बिहार आज अपने स्थापना का 110 वीं सालगिरह मना रहा है.बिहार निर्माण में मुसलमानों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.मगर बिहार दिवस पर मुस्लिम शख़्शितों का ईमानदारी से ज़िक्र नहीं होता.

सेराज अनवर

बिहार दिवस की बधाई.आज ही के दिन 22 मार्च 1912 को बिहार राज्य की स्थापना हुई थी.बिहार आज अपने स्थापना का 110 वीं सालगिरह मना रहा है.बिहार निर्माण में मुसलमानों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.मगर बिहार दिवस पर मुस्लिम शख़्शितों का ईमानदारी से ज़िक्र नहीं होता.मुसलमानों के ज़िक्र के बग़ैर बिहार दिवस बेमानी है.

आइए हम बताते हैं बिहार के निर्माण में किन किन मुसलमानों का क्या योगदान है.पहले यह जानना ज़रूरी है कि बिहार और बिहारियत की आवाज़ किसने उठाई?मुंगेर से दैनिक उर्दू मुर्ग़ ए सुलेमान प्रकाशित होता था.उसने ही सबसे पहले अलग बिहार राज्य की आवाज़ उठाई.उर्दू रोज़नामा ने बिहार,बिहारियों के लिए नारा दिया.यह मांग अख़बार ने उस वक़्त की जब लोगों के दिल वो दिमाग़ में नहीं था कि बिहार अलग राज्य भी हो सकता है.यह मांग 1870-80 के क़रीब उठी.अख़बार ने यह मांग उठा कर तहरीक की शक्ल दे दी.बिहार के स्थापना में उर्दू अख़बार का रोल बहुत बड़ा है.अफसोस है कि बिहार से प्रकाशित मौजूदा उर्दू अख़बार अपनी भूमिका भूल गए हैं.आज बड़े-बड़े सरकारी विज्ञापन छपे हैं मगर मुसलमानों का ज़िक्र कहीं नहीं है.उर्दू अख़बार ने मुसलमानों के योगदान पर न स्पेशल स्टोरी की है और न दो -चार लाइन का सम्पादकीय लिखा.जो क़ौम अपने योगदान का चर्चा नहीं करती,उसे दूसरे फ़रामोश कर जाते हैं.

बिहार अलग राज्य के निर्माण में सर अली इमाम,हसन इमाम,मौलाना मज़हरूल हक़ जैसी शख़्सियतों का नाम प्रमुख है.बिहार के निर्माता डॉ सच्चिदानंद सिन्हा के साथ इमाम ब्रदर की भूमिका को कभी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. सच्चिदानंद सिन्हा को आगे बढ़ाने में पटना नयोरा के इमाम फ़ैमिली की अहम भूमिका थी.वायसराय काउंसिल में सच्चिदानंद के साथ बिहार की ड्राफ़्टिंग अली इमाम और हसन इमाम ने की थी.आज बिहार इमाम फ़ैमिली को भूल गया है. यह कैसा जश्न है कि राज्य के निर्माण में योगदान देने वालों को याद नहीं किया जा रहा है?सर इमाम द फादर ऑफ़ मॉडर्न बिहार कहलाते हैं ,मौजूदा बिहार में उनके लिए कोई जगह नहीं है!

बिहार दिवस पर बैरिस्टर यूनुस और अब्दुल गफ़ूर को भी याद नहीं बनने का सौभाग्य भले ही प्राप्त है मगर उनसे पहले 1937 में बैरिस्टर यूनुस बिहार के प्रधानमंत्री बन चुके थे(तब मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री का पद था). वर्षगांठ के मौक़े पर कोई राज्य अपने पहले प्रधानमंत्री को कैसे याद नहीं कर सकता?बैरिस्टर यूनुस इंडिपेंडेंट पार्टी के प्रधानमंत्री थे.इमारत ए शरिया के संस्थापकों में से एक मौलाना सज्जाद अब्दुल मुहासिन ने बिहार में इंडिपेंडेंट पार्टी की बुनियाद रखी थी.उन्हें भी इस राजनीतिक योगदान के लिए बिहार याद नहीं करता. श्री बाबु को आगे बढ़ाने में शाह ज़ुबैर की भूमिका जगज़ाहिर है.कहते हैं कि शाह ज़ुबैर न होते तो श्री बाबु न होते.उस शाह ज़ुबैर को भी भूला दिया गया.अब्दुल गफ़ूर बिहार के इकलौता मुस्लिम मुख्यमंत्री हैं.बिहार दिवस पर इनकी भी चर्चा नहीं होती.अब्दुल कय्यूम अंसारी,सुल्तान अहमद,अब्दुल बारी,सैयद महमूद,खुदाबख़्श खां सब भूला दिये गए.जिस उर्दू अख़बार ने बिहार की आवाज़ उठाई,वह उर्दू को भी बेगाना बना दिया गया.बिहार दिवस पर राज्य की दूसरी भाषा उर्दू कहीं नज़र नहीं आती.

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