सेराज अनवर
PATNA:बिहार में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 5 सीटों पर कल यानी 26 अप्रैल को वोटिंग होनी है.इनमें पूर्णिया हॉट सीट बनी हुई है.लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव और पप्पू यादव अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं.दोनों की सियासी कैरियर के लिए यह चुनाव अहम है.यदुवंशी साम्राज्य की रक्षा के लिए जहां तेजस्वी ने पूर्णिया में पसीना बहाया वहीं,पप्पू यादव माय समीकरण का नायक बनने के लिए जी तोड़ मेहनत की है.पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में 4 लाख 87 हजार मुस्लिम और 1 लाख 27 हजार यादव वोटर हैं.कुल मिला कर 6 लाख माय(मुस्लिम-यादव)वोटर्स पर खेल होना है.जिसके साथ माय इंटैक्ट रहा जितने की सम्भावना उसकी प्रबल होगी.
पप्पू ने पूर्णिया का बदल दिया मंजरनामा
इस लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया.कभी नहीं झुकने वाले पप्पू यादव पहले लालू के दरबार में पहुंचे,नतमस्तक हो गये.फिर अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.उसके बाद कांग्रेस ने भी टिकट नहीं दिया.दूसरा नेता होता तो अपमान नहीं सह पाता लेकिन पप्पू जीवट वाले नेता हैं.सेहत से हैवीवेट हैं मगर इनका जूझारूपन नौजवानों को मात देता है.जनता का प्यार इनके साथ है.जो इन्हें पसंद नहीं करते उनकी भी हमदर्दी है.यही इनकी ताक़त है और इसी ताक़त के सहारे इन्होंने पूर्णिया का चुनावी मंजरनामा बदल कर रख दिया.कह सकते हैं कि जदयू प्रत्याशी संतोष कुशवाहा और राजद प्रत्याशी बीमा भारती की लड़ाई निर्दलीय पप्पू यादव से ही है.यानी पप्पू यादव नम्बर वन पर हैं.दूसरे नम्बर पर संतोष कुशवाहा और बीमा भारती की लड़ाई हो सकती है.
पप्पू की जीत के मायने
यह प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी भांप चुके हैं.पप्पू यादव जीत न जाये इसलिए पूर्णिया की चुनावी सभा में उन्हें ऐलान करना पड़ा कि यदि आप इंडिया(बीमा भारती)को वोट नहीं करते हैं तो एनडीए(संतोष कुशवाहा)को वोट कर दें.साफ बात.साफ बात को उन्होंने दो बार दोहराया अथार्त साफ-साफ संदेश दिया.मतलब पप्पू यादव को किसी भी सूरत में जीतने न दें.पप्पू यादव की हार तेजस्वी या राजद के लिए कितना मायने रखती है कि चुनाव प्रचार की आख़री बेला में उन्होंने रात पूर्णिया में होल्ड किया और सुबह-सुबह प्रेस कॉन्फ़्रेन्स की.तेजस्वी को पता है पप्पू यादव की जीत यादवी साम्राज्य का पतन का वाहक भी हो सकता है.आमधारणा है कि लालू प्रसाद ही यादव के नेता हैं और यह सत्य भी है मगर इसमें तेज़ी से ह्रास हुआ है.आमधारणा यह भी है कि लालू प्रसाद अपने जीते-जी यदुवंशी सल्तनत का नायकत्व अपने पुत्र तेजस्वी यादव को सौंप देना चाहते हैं.उस रास्ते में पप्पू यादव आ गये हैं.लालू को यह कैसे मंज़ूर हो सकता है कि तेजस्वी के रहते पप्पू यादव या कोई और यादवी राजनीति का झंडाबरदार हो जाये.कारण यही है कि लालू प्रसाद के विचारधारा की तिलांजलि दे कर तेजस्वी एनडीए की जीत की हद तक जा रहे हैं.तेजस्वी कहते हैं कि देश में दो धारा की लड़ाई है.एक तरफ़ इंडिया है और दूसरी तरफ़ एनडीए.एक संविधान बचाना चाहता है और दूसरा पलटना.यहां तक तो बात सही प्रतीत होती है लेकिन इंडिया को वोट न करने पर एनडीए को वोट करने की अपील समझ से परे नहीं बल्कि स्पष्ट है पप्पू के नेतृत्व के उभरने की आशंका को वहीं ज़मीनदोज़ कर देना,पूर्णिया सीट हार की शर्त पर.ज़ाहिर सी बात है पूर्णिया में जो यादवी समीकरण बनता दिख रहा है उसमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री देवेन्द्र प्रसाद यादव,बिहार मंत्रिमंडल में मंत्री रहे ददन यादव का समर्थन पप्पू यादव के साथ है.पप्पू यादव की जीत बिहार में यादवी राजनीति को विस्तार दे सकता है.पप्पू यादव को मुसलमानों का भी बड़े पैमाने पर हिमायत हासिल है.मुसलमान तेजस्वी से ज़्यादा पप्पू यादव को सेकुलर मानते हैं.
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