जो(राजनीतिक दल)पहले से हार कर बैठा है,वह कुछ उखाड़ भी नहीं सकता सिर्फ मातम,अफसोस,आंसू बहाने वाली क़ौम बदलाव का बोधक नहीं होती.द कश्मीर फाइल्स अच्छी फिल्म है,एक विचारधारा को जबरन थोपने के मामला में . . . !

सेराज अनवर

फिल्म आंदोलन नहीं होता है,मनोरंजन है.किसी फिल्म से क्रांति आयी हो तो बतायें.इसका समाज पर कोई असर भी नहीं होता.यदि फ़िल्मों का प्रभाव होता तो भ्रष्टाचार,बलात्कार,घपला-घोटाला पर कितनी फ़िल्में बनी,यह रुका क्यों नहीं?द कश्मीर फाइल्स भी मनोरंजक मूवी है.मज़ा लीजिए.संघ और सेक्युलरिज़म के काकटेल का!इस फिल्म की ख़ूब चर्चा हो रही है,सिनेमा घरों में नहीं,सोशल मीडिया पर.लोग बहस-मुबाहिसा कर मनोरंजन कर रहे हैं.फिल्म मुफ़्त में दिखाई जा रही है,सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी दी जा रही,फिल्म देखने का दबाव बनाया जा रहा है.फिल्म सिनेमाघरों में चल नहीं रही है.इसकी मिर्च-मसाला वाली कहानी सोशल मीडिया पर सुनियोजित तौर से दौड़ रही है.हज़ार लोग कह रहे पंडितों पर ज़ुल्म के वक़्त जगमोहन गवर्नर थे.संघ के हार्डकोर.विश्वनाथ प्रताप सिंह की केंद्र में सरकार थी,भाजपा साथ थी.थेथ्रोलोजी वाले देश में आपकी सुनता कौन है?सोशल मीडिया थेथरों से भरा है.अब फ़िल्मों पर भी ये क़ाबिज़ हो रहे हैं.

दूसरी बात,कश्मीर से सेक्युलरिस्ट,सोशलिस्ट,मियां जी का अचानक प्यार क्यों उमड़ पड़ा?जब कश्मीर में सेना के अत्याचार,बलात्कार की खबरें आती थीं तो कश्मीरियों के प्रति हमदर्दी कहां थी?राजनीतिक दलों ने वोट की राजनीति के तहत कश्मीर को अपना माना,कश्मीरियों को कभी नहीं?यदि कश्मीर को लेकर संवेदनशील होते तो पंडित भाईयों को पलायन नहीं करना पड़ता?उस वक्त हिंदू हो या मुसलमान सब तमाशा देख रहा था और भारत का मुसलमान किस मुंह से बात करता है,कश्मीरियों के साथ कभी रोटी-बेटी का रिश्ता रखा क्या?उसको उसके हाल पर छोड़ दिया.इस डर से कि उनकी देशभक्ति पर सवाल खड़ा न हो जाये.किसी भी मुद्दा पर मुसलमान ज़्यादा बौखलाता है,बहस करता है और सबको चिंता क्यों नहीं होनी चाहिए?कश्मीरियत से किसको मुहब्बत है?कभी यह जन्नत निशां हुआ करता था?

तीसरी बात,ख़ूब प्रचारित हो रहा है गुजरात दंगा पर फ़िल्म बननी चाहिए.इस पर बननी चाहिए,उस पर बननी चाहिए.परजनीया देखें,शूद्र द राइजिंग देखें.गुजरात दंगा पर फिल्म बनाने से आपको किस ने रोक रखा है.परजनीया या शूद्र द राइजिंग का ख़्याल आज ही क्यों आया?आपने दिखाया क्यों नहीं?जब संघ समर्थित थिंकटैंक बाज़ी मार गया.पिछली रोटी खाने वाले सांप के गुज़र जाने के बाद लाठी पिटते रह जाते हैं.छोड़िए!फिल्म की बात,फिल्म समाज के बदलाव का ज़रिया नहीं है.द कश्मीर फाइल्स की चर्चा भी जल्द ही थम जायेगी.यह बताइए,जनता के बुनियादी सवालों पर कितने आंदोलन किये?नोटबंदी को लेकर आम आदमी की समझ थी कि इससे एक पार्टी का आर्थिक लाभ होना है.देश में अफ़रातफ़री मची थी,विपक्ष को मज़बूत स्टैंड लेना था तो उसके नेता भी पैसा निकालने के लिए बैंक के लाइन में लगे थे.लोग लाइन में लग कर शहीद हो रहे थे और सेक्युलर,समाजवादी,प्रगतिशील समाज मुंह में दही जमा कर बैठा था.बाद में नोटबंदी नाकाम साबित हुई.इसी बीच भाजपा ने देश भर में आलीशान दफ़्तर बनाए और विपक्ष हाथ मलता रह गया.एक फिल्म नोटबंदी पर भी बनेगी और उसे सही साबित कर दिया जायेगा.जीएसटी पर स्टैंड क्या रहा?

विपक्ष कोरोना में कहां खड़ा था?एक राष्ट्रीय पार्टी की महिला नेत्री हाथ-मुंह कैसे धोयें यह बता रही थी.अचानक लॉकडाउन के फैसला का कड़ा विरोध करने की हिम्मत किसी ने नहीं जुटाई.हैरत तो तब हुई जब प्रधानमंत्री मोदी के अवैज्ञानिक ताली-थाली बजा कर कोरोना को भगाने की अपील पर कथित प्रगतिशील और सेक्युलर लोग भी शामिल हो गए.आगे इस पर भी फिल्म बनेगी.जब शूटकेस भर-भर उद्योगपति देश से भाग रहे थे,आपने उसे पकड़ने का प्रयास किया?कोई आंदोलन खड़ा क्या?देश को बताया,आपका पैसा लूट कर भाग रहे?सिर्फ मातम करने से क्या होगा?इस पर भी फिल्म बनेगी,किस मजबूरी में उद्योगपति भाग रहे थे,उस पर कितना ज़ुल्म हुआ,भागने से देश को कितना लाभ हुआ?

फासिज़्म प्रोपगंडा पर आधारित होता है.संघ वही कर रहा ,जिस सोच पर उसकी स्थापना हुई.जब सत्ता हाथ लगी वह अपने विचारधारा को लागु कर रहा,थोप रहा है.किसी भी पार्टी को अपने मैनिफ़ेस्टों पर क़ायम रहना चाहिए.भाजपा या संघ समर्थक अपने विचारधारा को लेकर गम्भीर है तो ग़लत क्या है?आप हार्ड हिंदुत्व और सॉफ़्ट हिंदुत्व में फंसे रहिये.आंदोलन में मत जाईए,गर्मी ऐसे भी बढ़ रही है,धूप में काला पड़ जायेंगे.एसी में बैठ कर बौद्धिक अय्याशी करते रहिए.जो(राजनीतिक दल)पहले से हार कर बैठा है,वह कुछ उखाड़ भी नहीं सकता सिर्फ मातम,अफसोस,आंसू बहाने वाली क़ौम बदलाव का बोधक नहीं होती.द कश्मीर फाइल्स अच्छी फिल्म है,एक विचारधारा को जबरन थोपने के मामला में . . . !

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