मंथन डेस्क
PATNA:बिहार के आधा दर्जन अल्पसंख्यक धार्मिक संस्थान के धर्मगुरुओं के एक राजनीतिक परिवार से मिलने की ख़बर है.इस पर जनता दल राष्ट्रवादी की कड़ी प्रतिक्रिया आयी है.जेडीआर के राष्ट्रीय संयोजक अशफाक़ रहमान ने कहा है कि मुसलमानों के यह इदारे उस वक़्त किस खोल में सिमटे थे जब एमएलसी और राज्यसभा चुनाव में इस समुदाय को नज़रअंदाज़ कर दिया गया और लोकसभा चुनाव में दो कौड़ी का नहीं समझा.
अपनी और क़ौम का इमेज गिरा रहे
अशफाक़ रहमान कहते हैं कि बहुत अफसोस की बात है कि एक तरफ़ तो दीन बचाओ-देश बचाओ वाले एमएलसी और दूसरी तरफ़ सभी अल्पसंख्यक धार्मिक संस्थाएं एक अंजाने खौफ़ के साथ कथित धर्मनिरपेक्ष दल के समक्ष नतमस्तक हो रहे हैं और पूरी क़ौम को ज़लील कर रहे हैं.सौदाबाज़ी का यह आग़ाज़ उसी समय ही हो गया था जब दीन के नाम पर लाखों लोगों को जमा किया और एक एमएलसी पर सौदा कर लिया.क़ौम के ज़कात,फ़ितरा और सदक़ा के पैसा पर चलने वाली संस्थायें न सिर्फ़ अपनी इमेज गिरा रहे हैं बल्कि पूरी तरह से क़ौम की सियासी तबाही का सबब बन रहे हैं.
अपनी लीडरशिप खड़ी नहीं करते
यह अपनी लीडरशिप खड़ी करने के बजाय क़ौम को सियासी बुज़दिल बना रहे हैं और समुदाय को यह समझा रहे हैं कि हम जब भी कोई क़दम उठायेंगे तो ग़लत ही उठायेंगे.लोगों को यह सोचना चाहिये कि ऐसे संस्थानों में धन(ज़कात,फ़ितरा,सदक़ा)देना कितना वाजिब है?उक्त संगठन कभी भी मुसलमानों की राजनीतिक हिस्सेदारी,सामाजिक उत्थान पर कुछ नहीं बोलते,बेचैनी नहीं दिखाती.लेकिन,जिस तरीक़े से पॉलिटिकल पार्टी के समक्ष नतमस्तक हो रहे हैं.वह बहुत ही शर्म की बात है,चिंतनीय है.
उस वक़्त कहां थे?
ये उस वक़्त कहां थे जब कथित सेकुलर पार्टियों ने जनसंख्या की तुलना में इनके क़ौम के लोगों को उचित हिस्सेदारी नहीं दी.ज़िंदा मिसाल है एक लोकसभा और एक राज्यसभा सदस्य का टिकट काट दिया गया.एक सेकुलर और एक कम्यूनल पार्टी से थे.यह लोग भी अपनी इमेज ख़त्म कर रहे हैं.इस वक़्त उनके पार्टी छोड़ने और दूसरी पार्टी में जाने से आवाम में बुरा ही असर पड़ेगा.क्योंकि जब चिड़िया चुग गयी खेत तो फिर पार्टी बदलने का क्या फ़ायदा?न तो इनको टिकट मिलने जा रहा है और न इनको किसी तरह की मदद मिलने जा रही है और न यह क़ौम का भला कर सकते हैं.उल्टे इनके ऊपर बोझ डाल दिया जायेगा कि आप तन-मन-धन से हमारी पार्टी को जिताने में लग जायिए.इसी झांसे में 75 साल से मुसलमान नित-नये गड्ढे में गिरते जा रहे हैं और सियासी रूप से अल्पसंख्यक समुदाय का क़त्ल किया जा रहा
दबे–कुचले लोगों की हक़ की बात क्यों नहीं की?
अशफाक़ रहमान कहते हैं कि यह मिलना-जुलना उस वक़्त होता तो बात समझ में आती.जब जाति गणना हुआ.धार्मिक रूप से नहीं,भौगोलिक और सामाजिक तौर से पिछड़े,दबे-कुचले लोगों की हिस्सेदारी और हक़ की बात करते.उस वक़्त मिलते,दबाव बनाते जब चुनाव की घोषणा हुई.तो दो-चार टिकट बढ़ जाता.ये लोग उस वक़्त जा रहे जब इनको साथ नहीं देना चाहिए.लेकिन,क़ौम को राजनीतिक दिशा दिखाने के जगह राजनीतिक पतन कैसे होता है यह सिखा रहे हैं
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