PATNA::सामाजिक संस्था अल-हम्द में आज ‘पैग़ाम ए मुहर्रम’पर एक लेक्चर का आयोजन हुआ.यह महीना मुहर्रम का चल रहा है,जो इस्लामी साल का पहला महीना है.इसी महीने की दस तारीख़ को कर्बला में हज़रत इमाम हुसैन को यज़ीदियों ने शहीद कर दिया था.दसवीं तारीख़ को यौम ए आशूरा कहते हैं.पटना के हारून नगर स्थित अल-हम्द के दफ़्तर में शनिवार को आयोजित कार्यक्रम की ख़ासियत यह रही कि शिया और सुन्नी समुदाय के उलेमा,बुद्धिजीवी ने एक मंच से मुहर्रम के पैग़ाम को फैलाने का काम किया.

पटनासिटी स्थित मदरसा सुलेमानिया के पूर्व प्राचार्य और शिया आलिम मौलाना अमानत हुसैन ने अपने सम्बोधन में मुहर्रम के महत्व का ज़िक्र करते हुए कहा कि इमाम हुसैन की शख़्सियत ऐसी है कि जिसको हर मज़हब और मसलक के लोग मानते हैं.सुनने से ज़्यादा उनकी शख़्सियत को दिल में उतार लें.हर मंजर का पसमंजर होता है.मुहर्रम ज़ख्म भी है और मरहम भी है.एक पैग़ाम है ज़ालिम के सामने सिर नहीं झुकाना.आज भी शरीयत को निशाना बनाया जा रहा है.इमाम हुसैन ने शहादत दे दी मगर सिर नहीं झुकाया.मदीना में लोगों की कमी नहीं थी.मगर जब बात शरीयत पर आ गयी तो इमाम हुसैन निकल पड़ें.इमाम हुसैन जंग या तख़्त वो ताज केलिये कर्बला नहीं पहुंचे थे.हुसैन की क़ुर्बानी पूरी मानवता के लिए है.उन्होंने अपनी जान देकर पूरी इंसानियत को बचा लिया .जिस तरह 15 अगस्त को प्रत्येक धर्म के लोग देश पर निछावर शहीदों को याद करते हैं.इमाम हुसैन को हम इस लिए याद करते हैं कि यदि उस वक़्त होते तो हम उनके साथ होते.उस वक़्त तो हम सब थे नहीं,इसलिए आज यह बताना चाहते हैं कि यक़ीनन हम कर्बला में इमाम हुसैन के साथ होते.


अल-हम्द के अध्यक्ष मुफ्ती सुहैल अहमद क़ासमी ने कहा कि मुहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना है और इसी महीने से हिजरी कैलेंडर का आग़ाज़ होता है.इसी महीने में इमाम हुसैन की शहादत का वाक़या पेश आया जो आला दर्जा के इस्लाम और शरीयत पर अमल करने का सबक़ देता है.अल-हम्द के सरपरस्त अशफ़ाक़ रहमान ने पैग़ाम ए मुहर्रम को आमजन तक पहुंचाने पर ज़ोर दिया.उन्होंने कहा कि यह इस्लामी इतिहास से जुड़ा है.इमाम हुसैन की शहादत बुराई के आगे नहीं झुकने और हक़ केलिए मर मिटने का पैग़ाम देता है.लेकिन,दुर्भाग्य से इस संदेश को आज मुस्लिम समुदाय के लोग ही मटियामेट करने पर तूले हैं.मुहर्रम के मौक़े पर ताज़िया,अखाड़ा,डीजे,नाच-गाना और भिन्न-भिन्न बेहुदगियों से मुहर्रम के पैग़ाम को आज नई-नस्ल मजरूह करने पर आमादा है और उलेमा हज़रात कुछ नहीं कहते यह मुस्लिम समाज का विडम्बना है.कार्यक्रम में नाफे आरफ़ी,साजिद परवेज़,अनवारुल होदा,ज़िया उल हसन,नेमतुल्लाह शेख़,ख़ुर्शीद आलम,शमीम आरवी,शमीम आलम,इरफ़ान बख्शी,मौलाना मोहम्मद रज़ा उल्लाह,मौलाना मोहम्मद जमाल उद्दीन क़ासमी,मौलाना इक़बाल,अनवारुल्लाह,हाफ़िज़ महताब आलम,मोहम्मद हसनैन,नवाब अतीक़ उज़ ज़मा,मुफ्ती इमाम उद्दीन क़ासमी आदि भी शरीक रहे.

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