सेराज अनवर
PATNA:भारत सेकुलर स्टेट नहीं है.लोग कहते हैं तो मान लेते हैं.धर्मनिरपेक्ष का अर्थ होता है स्टेट धर्म में हस्तक्षेप नहीं करेगा.यहां धर्म और राजनीति का घालमेल ऐसा है कि पता ही नहीं चलता धर्म कहां है और राजनीति कहां?राजनीति का धार्मिककरण ने सब गडमड कर दिया है.उर्दू में सेकुलरिज़म के मायने ला-दीनीयत होता है यानी दीन में यक़ीन नहीं रखने वाला और मुसलमान सबसे ज़्यादा.सेकुलरिज़म में यक़ीन रखता है?
अभी चुनाव का मौसम है और सेकुलरिज़म की ख़ूब चर्चा हो रही है.कैसा सेकुलरिज़म और सेकुलरिज़म के लिए लड़ कौन रहा है?सभी कुर्सी और सत्ता के लिए लड़ रहे हैं,सेकुलरिज़म की हिफ़ाज़त के लिए कोई नहीं लड़ रहा.सिर्फ ओवैसी बदनाम हैं कि भाजपा के एजेंट हैं जबकि एजेंटी सब कर रहा है.बात पूर्णिया से करते हैं.राजद ने पप्पू यादव के लिए वह सीट छोड़ क्यों नहीं दी.पप्पू यादव भाजपा में थे?कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे.मज़बूत स्तिथि में हैं.राजद ने वहां अपना उम्मीदवार उतार दिया.सेकुलर वोट बंटेगा तो उसका लाभ किसको मिलेगा?तेजस्वी भाजपा से नहीं लड़ कर पप्पू यादव से क्यों लड़ रहे हैं?पप्पू यादव की जीत महागठबंधन की नहीं होती?कहां गया सेकुलरिज़म?
हर दिन सेकुलर पार्टी के नेता भाजपा में जा रहे हैं.किस मुंह से ये लोग सेकुलरिज़म की बात करते हैं.विचारधारा से लैस किया जाता तो कथित धर्मनिरपेक्ष दलों के सेनापति भागते क्यों?बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा,औरंगाबाद लोकसभा चुनाव के राजद प्रत्याशी उपेन्द्र प्रसाद,कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ भाजपा में शामिल हो गये.याद होगा गौरव वल्लभ ने जब भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा से पूछा था कि ट्रिलियन में कितने जीरों होता है तब यह कांग्रेस और मुसलमान की नज़र में पकिये सेकुलर थे.आज दोनों की नज़र में कम्यूनल ज़रूर हो गये होंगे.यहां कोई भी एक दिन में सेकुलर और एक दिन में कम्यूनल हो जाता है.वैसे ही जैसे भारतीय जनता पार्टी में जाने के बाद कोई भी भ्रष्टाचारी ईमानदार हो जाता है.
अजय निषाद को जानते ही होंगे.वही मुज़फ़्फ़रपुर के भाजपा सांसद.टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस में आ गये.कल तक कांग्रेस की निगाह में कम्यूनल थे.कांग्रेस में आकर गंगा नहा गये.सेकुलर का तमग़ा मिल गया.कोरोनाकाल में मुसलमानों को ख़ूब गरियाते थे.अब मुसलमान उछल-उछल कर वोट करेगा.सेकुलर का लिबादा जो उसने ओढ़ लिया.यही है हमारे देश का सेकुलरिज़म.पार्टी के आधार पर सेकुलरिज़म और कम्यूनलिजम की व्याख्या यहां होती है ,विचारधारा की बुनियाद पर नहीं.विचारधारा की लड़ाई में परिवार,सत्ता,कुर्सी,पावर पीछे होना चाहिए.विचारधारा से सेकुलर पार्टी कमज़ोर है.अन्यथा,राज्यसभा में रहते हुए लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाना कोई तुक नहीं है.यह जानते हुए कि दो बार से बिटिया हार रही है.पूरे परिवार को चुनाव लड़ाना भी सेकुलरिज़म नहीं है.ख़ुद अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य रहते हुए सुपुत्र के टिकट के लिए दुबला होना भी सेकुलरिज़म की लड़ाई नहीं है.यूपी में अखिलेश रोज़ उम्मीदवार ही बदल रहे हैं.राहुल की सीट पर वामपंथ क्यों लड़ रहा है?यह सेकुलरिज़म के किस दायरे में आता है?
ओवैसी के बयान से धुर्वीकरण होता है तो बंगाल में ममता,कांग्रेस,सीपीएम के आपस में लड़ने से सेकुलरिज़म की गोलबंदी हो रही है?राजद या इंडिया गठबंधन में मुसलमान को पीछे रख कर धर्मनिरपेक्षता की कौन सी लड़ाई लड़ी जा रही है.चुनावी सभाओं के मंच पर मुसलमान कहीं दिख क्यों नहीं रहा है?तेजस्वी बीमा भारती के नामांकन में पूर्णिया पहुंच जाते हैं बग़ल में डॉ.जावेद और तारिक़ अनवर का भी उसी दिन किशनगंज और कटिहार में नॉमिनेशन था,वहां क्यों नहीं गये?राजद ने अबतक कितने मुसलमान को टिकट दिया?भाजपा कम से कम सेकुलरिज़म की बात नहीं करती और न मुसलमानों को मुग़ालते में रखती है.भाजपा से डरा कर यदि वोट बटोरना सेकुलरिज़म है तो ऐसा सेकुलरिज़म से तौबा!
बिल्कुल सही कहा है आपने सेकुलरिज्म के नाम पर सिर्फ पार्टीयों की अपनी गोलबंदी एवं सत्ता हासिल करना। हर नेता अपने दल के हिसाब से भाषा बदलना शुरू कर देते हैं और उनके अंदर मन में कुछ रहता है
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