एनडीए हो या इंडिया दोनों ने आपसी सहमति से वोटबैंक की हैसियत रखने वाले इस समुदाय को चुनाव से अलग-थलग कर दिया है यानी बिल्कुल काट कर रख दिया है.नीतीश कुमार की पार्टी हो या अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी मुसलमानों को टिकट देना गुनाह ए अज़ीम समझ रही है.
मंथन डेस्क
PATNA:पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में यदि कोई वर्ग अछूत है तो वह मुसलमान है.एनडीए हो या इंडिया दोनों ने आपसी सहमति से वोटबैंक की हैसियत रखने वाले इस समुदाय को चुनाव से अलग-थलग कर दिया है यानी बिल्कुल काट कर रख दिया है.नीतीश कुमार की पार्टी हो या अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी मुसलमानों को टिकट देना गुनाह ए अज़ीम समझ रही है.
यह कहना है जनता दल राष्ट्रवादी के राष्ट्रीय संयोजक अशफाक़ रहमान का.उनका कहना है आप पता कर लीजिए पांच राज्यों ख़ास कर राजस्थान,मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनावों में कितने मुसलमानों को इन कथित सेक्युलर दलों ने चुनाव में उतारा है.जबकि इन राज्यों में 9-10 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है.मुसलमानों को टिकट कोई नहीं दे रहा है.भाजपा केलिए मुसलमान तो पहले से अछूत हैं.प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुसलमानों को तोड़ने के लिए पसमांदा का पांसा फेंकते हैं मगर उनकी पार्टी चुनावों में मुसलमानों को नहीं उतारती.रही बात कांग्रेस की तो वह भी बीजेपी की राह पर ही चल रही है.
अशफाक़ रहमान कहते हैं कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों सिक्के एक पहलू हैं.जिधर से देखें दोनों नज़र आयेगी.दोनों में सहमति है मुसलमानों को लोकतंत्र की धारा से अलग-थलग कर देना है.ज़ाहिर सी बात है जो क़ौम चुनाव की राजनीति से अलग हो जाती है या कर दी जाती है लोकतांत्रिक प्रणाली में उसका योगदान क्या होगा?कभी बाला साहब ठाकरे की पार्टी ने कहा था मुसलमानों की वोटिंग राइट को छिन लिया जाये आज कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टी बारीकी से इस एजेंडा को लागू करने में लगी है.
जेडीआर नेता का कहना है कि मुसलमान यदि भारत से चुनाव नहीं लड़ेगा तो फिर कहां से लड़ेगा.यह फ़िक्र मुसलमानों के बड़ी-बड़ी संस्थाओं के मज़हबी ठेक़ादरों,उलेमा ए सू,बुद्धिजीवी मुसलमानों,सियासी रहनुमाओं किसी को भी नहीं है और जब कोई अपनी क़यादत की बात करता है तो उसको यही लोग भाजपा का एजेंट कहते हैं.इन पांच राज्यों के चुनाव में ही देख लीजिए.कौन किसका एजेंट है?
नीतीश कुमार की पहल पर इंडिया गठबंधन बना उनकी पार्टी जदयू ने भी गठबंधन धर्म का निर्वाह नहीं कर अपना उम्मीदवार उतार दिया है.अखिलेश यादव की पार्टी में इन चुनाव में अपने उम्मीदवार उतार कर पूरी ताक़त झोंक रही है.अरविन्द केजरीवाल की पार्टी भी गठबंधन को दरकिनार कर आपस में भिड़े हुए हैं.क्या ये लोग बीजेपी की मदद नहीं कर रहे है?और जब कोई मुस्लिम नेतृत्व वाली पार्टी लोकतन्त्र को संवारने उसकी ख़ूबसूरती के लिए चुनाव में उतरती है तो वह बीजेपी का एजेंट कैसे हो जाती है?
संविधान,सेक्युलरिज़्म और लोकतंत्र में यक़ीन रखने वाले इस देश के हर शख़्स को इस बारे में ईमानदारी से सोचना होगा.चुनाव लड़ने का अधिकार सबको है और हर वर्ग,तबक़ा को उचित टिकट देना भी सभी दलों का धर्म होना चाहिए.मुसलमानों को अलग-थलग कर आप लोकतन्त्र के सच्चे प्रहरी नहीं हो सकते,न बीजेपी को रोक सकते.
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