मंथन डेस्क

PATNA:मुख्यमंत्री आवास पर हुई मुसलमानों की मीटिंग पर जनता दल राष्ट्रवादी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है.पार्टी ने कहा है कि जब बिना ठोस एजेंडा की मीटिंग होती है तो उसका बेनतीजा होना लाज़िमी है.जेडीआर के राष्ट्रीय संयोजक अशफाक़ रहमान कहते हैं कि मीटिंग बेशक,नीतीश कुमार की मौजूदगी में हुई लेकिन वहां मौजूद अधिक्तर मुस्लिम नेता नॉमिनेटेड थे,इलेक्टेड नहीं.जिनका समाज में अपना कोई बेस नहीं है.यही कारण रहा कि मीडिया ने इस ख़बर को तरजीह नहीं दी.

अशफाक़ रहमान कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन मुसलमानों को इसलिए बुलाया होगा कि मुस्लिम मसअलों से उन्हें रूबरू कराया जायेगा.उन्हें क्या मालूम जिन लोगों को मीटिंग में बुलाया उनके मुंह में ज़बान नहीं है?अगर आप अपनी समस्याओं को नहीं गिना पायें,उसके हल केलिए नहीं कह पाये तो इसमें नीतीश कुमार का दोष नहीं है?गिनाने के लिए बीसों मसअलें थे.क़ौम की तरक़्क़ी से जुड़ी अल्पसंख्यक संस्थान का महीनों-सालों से भंग रहना,संगठन,सरकार में मुसलमानों की हिस्सेदारी नगण्य रहना,यूनिवर्सिटीयों में मुस्लिम वीसी का नहीं होना,प्रशासन में मुस्लिम अधिकारियों की कमी,उर्दू शिक्षक और उर्दू ज़बान के प्रति असंवेदनशील रवैया,चुनाव में मुसलमानों को मुनासिब टिकट नहीं मिलना आदि मुद्दों को गम्भीरता से उठाया जा सकता था,यह मौक़ा मुसलमानों ने गंवा दिया.मुख्यमंत्री को यही लगा होगा,मुसलमानों का कोई मसअला ही नहीं है?

अशफ़ाक़ रहमान का यह भी कहना है कि असद उद्दीन ओवैसी को किस मुंह से निशाना बनाया जा रहा है?जबकि पटना नगर निगम चुनाव में एक मुस्लिम नौजवान अफज़ल इमाम को महागठबंधन ने हराने का काम किया.जदयू-राजद के मुस्लिम विरोधी रवैया के कारण पटना की मेयर और डिप्टी मेयर पद पर भाजपा क़ाबिज़ हो गया.मुसलमान महागठबंधन को वोट दे और महागठबंधन का वोट मुसलमान को नहीं मिले,यही तो हो रहा है.इतनी बड़ी आबादी सिर्फ दूसरों को वोट देने के लिए है या इसके अपने हक़-अधिकार भी हैं?अफज़ल इमाम की हार ताज़ा सबूत है.यही कारण है कि सदन में मुस्लिम प्रतिनिधित्व निरंतर घटती जा रही है.

अशफ़ाक़ रहमान पूछते हैं कि महागठबंधन में छोटी-छोटी जाति की जितनी हिस्सेदारी है,मुसलमानों की उतनी है?महागठबंधन का मेजर पार्ट मुसलमानों को मुनासिब हिस्सेदारी नहीं मिलनी चाहिये?सत्ता-सियासत में हिस्सेदारी नहीं मिलने से मुसलमानों को और पिछड़ जाने का ख़तरा नहीं है?यदि चंद लोगों का चापलूस राजनीति से दाल-रोटी चल रहा है तो क्या आम मुसलमान का भी पेट भर रहा है? नीतीश कुमार को हां में हां मिलाने वाले मुसलमानों से बच कर रहना चाहिये,जो लोग क़ौम के हमदर्द नहीं हो सकते वह मुख्यमंत्री का कैसे हो सकता है?

अशफ़ाक़ रहमान कहते हैं कि ये मुस्लिमनुमा चेहरे तब कहां थे जब जदयू ने सीएए-एनआरसी पर भाजपा का समर्थन कर दिया था और राज्यसभा में सीएए की हिमायत में जदयू ने वोट किया था.क्या इन मुसलमानों को नहीं मालूम था कि सीएए-एनआरसी क़ानून आता है तो कितनी मुश्किलें पेश आयेंगी.नीतीश अच्छा काम कर रहे और मुसलमानों का काम करना भी चाहते हैं मगर अपने निजी स्वार्थ में दरबारी मुसलमान उन्हें गुमराह कर रहे हैं.क़ौम को यह समझना चाहिए.

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