मंथन डेस्क
PATNA:मौलाना सज्जाद नुमानी के मुस्लिम सियासत के हाशियाबरदार बनने के कारणों में कांग्रेस और सेकुलर दलों के किरदार पर सवाल उठाये जाने के बाद देश भर में बहस छिड़ गयी है.बिहार और भारत की मुस्लिम सियासत को दिशा देने के लिए लम्बे अर्से से काम कर रहे जनता दल राष्ट्रवादी के राष्ट्रीय संयोजक अशफाक़ रहमान ने कहा है कि उलेमा को समझना होगा कि इमामत ए सोगरा और इमामत ए कुबरा दो अलग चीज़ है.उलेमा ख़ुद लीडर न बनें मुसलमानों की रहनुमाई करें और मिल्लत के अंदर क़ायद पैदा करें.सिर्फ रोने से कुछ नहीं होगा अब कुछ करना भी पड़ेगा.
जेडीआर नेता ने कहा कि हम मौलाना सज्जाद नुमानी साहब की इज़्ज़त करते हैं,सियासी सूझबुझ वाले मौलाना हैं,उनके अंदर मुस्लिम राजनीति को आगे बढ़ाने का जज़्बा है.उन्होंने कांग्रेस और कथित सेकुलर दलों के बारे में जो कुछ कहा कि इनकी वजह से आज मुसलमान राजनीतिक हाशिए पर हैं,सौ प्रतिशत सत्य है.इन्हें हमारा वोट चाहिए लेकिन मंच नहीं साझा करेंगे,साथ में नहीं बैठायेंगे,टिकट नहीं देंगे,देंगे भी तो अपना वोट मर्ज़ नहीं करायेंगे और मुस्लिम प्रत्याशी हार जायें इसका प्रयास करेंगे.
अशफाक़ रहमान कहते हैं कि उलेमा हमारे मीरास हैं.उन्हें चाहिए कि वह इमामत ए सोग़रा यानी मज़हब की ज़िम्मेदारी ईमानदारी से सम्भालें और इमामत ए कुबरा यानी सियासत उम्मा के हवाले कर दें.क़ौम को भी अपनी सियासत और अपनी क़यादत के प्रति ईमानदार होना होगा.ज़ाहिर सी बात है जब उलेमा ए हक़ की निगरानी होगी तो मुस्लिम सियासत को परवान चढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.लेकिन उलेमा को पहले मसलक की दुकान बंद करनी होगी.मौलाना नुमानी साहब ने वही बात कही है जो हम वर्षों से बोलते आ रहे हैं,जिसे रिकार्ड में देखा जा सकता है.मेरा मानना है कि कांग्रेस ही बीजेपी है और बीजेपी पार्टी अब रही नहीं वह मोदी की पार्टी बन कर रह गयी है.बीजेपी के सौ सांसद कांग्रेस के हैं.दोनों में कोई फ़र्क़ नहीं है.सिक्का के एक ही पहलू है.कांग्रेस ही असल में भाजपा है.
अशफाक़ रहमान कहते हैं कि क़ौम को कोई दग़ा या धोखा नहीं दे रहा है,मुस्लिम क़ौम अपने कारणों से परेशान है.जब वह ख़ुद क़ुली बनने को तैयार है तो दूसरे का इसमें क्या क़ुसूर है.वह क़ुली से क़ायद बनने को तैयार ही नहीं है.जब कोई क़यादत करे तो क़ौम को भी उस पर भरोसा करना होगा वरना मौलाना सज्जाद नुमानी हो या अशफाक़ रहमान सिर्फ अपना दर्द बांटते रहेंगे और कुछ नहीं होगा.जब तक पूरी क़ौम अपनी सियासी बदहाली का दर्द महसूस न करे.एक बात और मौलाना सज्जाद नुमानी से बिहार के उन उलेमा और धार्मिक संगठनों को सीख लेनी चाहिये जो अपने स्वार्थ में रात के अंधेरे में सियासी दरबार में सजदारेज़ हो जाते हैं.मौलाना सज्जाद ने उनकी ही महफील में बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखी है.