“पत्रकारों को अपना अधिकार है अपनी बात रखने का. लेकिन करने देता है उनको, जबदस्ती कहता है यही छापो यही लिखो.सब चीज रिकार्डेड रहता है कल होकर जब इनका राज खत्म हो जाएगा तो सब चला देंगे.’’नीतीश का भाजपा पर मीडिया को मैनेज करने का आरोप आम है.दीगर बात है कि किसी मीडिया संस्थान ने भी आज तक नीतीश के आरोप का खंडन नहीं किया.
सेराज अनवर
PATNA:बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल मीडिया से बेहद खफ़ा हैं,ख़ूब खिसियाए हुए हैं.जब भी पत्रकारों से सामना होता है उनका पारा हाई हो जाता है.कोई ऐसा दिन नहीं है कि प्रेस पर तंज़ नहीं कसते?अभी आप लोग आज़ाद नहीं हैं,सिर्फ यह नहीं कहते कि ग़ुलाम हैं.”पत्रकारों को अपना अधिकार है अपनी बात रखने का. लेकिन करने देता है उनको, जबदस्ती कहता है यही छापो यही लिखो.सब चीज रिकार्डेड रहता है कल होकर जब इनका राज खत्म हो जाएगा तो सब चला देंगे.’’नीतीश का भाजपा पर मीडिया को मैनेज करने का आरोप आम है.
मीडिया पर नीतीश का तंज़
आज फिर नीतीश कुमार ने मीडिया पर जम कर तंज़ कसा.मौक़ा था इंडिया गठबंधन की मुम्बई में बैठक समापन पर प्रेस कॉन्फ़्रेन्स का.उन्होंने दोहराया एक बार जब उनसे (पीएम नरेंद्र मोदी) मुक्ति मिलेगी, तब आप प्रेस वाले आजाद हो जाएंगे, तब आपका जो मन करे लिखिएगा.आजकल देख रहे हैं कि वो कोई काम नहीं कर रहे हैं लेकिन उनकी बड़ाई छापी जा रही है.ये देश के इतिहास को बदलना चाहते हैं, हम इन्हें इतिहास नहीं बदलने देंगे.सबका उत्थान करेंगे किसी के साथ भेदभाव नहीं होने देंगे.सबको आगे बढ़ाना है.
‘दरबारी पत्रकारिता’कोई आज की उपज नहीं
नीतीश का आरोप कितना सत्य है,कितना नहीं हम इस बहस में नहीं पड़ना चाहते लेकिन,कौन सरकार है जो मीडिया पर लगाम नहीं चाहता?कौन इतना जिगर वाला शासक है जो सत्य पर आधारित ख़बर को बर्दाश्त करने का माद्दा रखता है?शासक वर्ग का चेहरा एक जैसा ही होता है.’दरबारी पत्रकारिता’कोई आज की उपज नहीं है.आज उसी को गोदी मीडिया का नाम दिया गया है.भारी सियासी गिरावट के इस दौर में करंजिया या प्रभाष जोशी पैदा होने से रहें.
पत्रकारिता और विचारधारा को बिल्कुल अलग होना चाहिए.
कभी पत्रकारों में स्टोरी को लेकर रस्साकशी रहती थी.प्रतिद्वंद्विता ऐसी कि सुबह ख़बर छपने की बाद बाज़ी मारने वाले पत्रकार नायक बन घूमते थे.किसी स्टोरी को बीट करने पर कई दिनों तक मीडिया संस्थानों ,सियासी गलियारों में इसकी चर्चा होती थी.अब सब हम्माम में नंगे हैं,कुछ को छोड़ कर.तो न पत्रकारों की चर्चा होती है न स्टोरी की.सब एक ही विचारधारा से लैस हैं.पहले भी था मगर ऐसा नहीं था.पत्रकारिता में पहले विचारधारा इस क़दर घुसेड़ी नहीं जाती थी.जितना घृणित रूप से यह कार्य आज हो रहा है.पत्रकारिता और विचारधारा को बिल्कुल अलग होना चाहिए.पत्रकारिता में निजी विचारों का प्रतिबिम्ब नहीं दिखना चाहिए.
बिहार में मीडिया मैनेज नहीं होता रहा है?
बात नीतीश कुमार की.पत्रकारों पर बंदिश की यहां भी कई तरह के क़िस्से रहे हैं. नीतीश कुमार क्या मीडिया पर लगाम नहीं लगाते रहे हैं?बिहार में मीडिया मैनेज नहीं होता रहा है?कड़ी ख़बर लिखने की सज़ा पत्रकार बंधुओं को नहीं मिलती रही है?ख़बर की शर्त पर विज्ञापन बंद नहीं होते रहे हैं?.क्या मीडिया संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए विज्ञापन को सेंट्रलाइज़ नहीं किया गया?अब विभागों के पास विज्ञापन का एकाधिकार नहीं है.कई मीडिया संस्थान में पत्रकारों का डिमोशन-प्रमोशन पत्रकारिता की जगह चाटुकारिता पर तय नहीं होती रही है? पत्रकार जब लिखना बंद कर देता है तो शासक वर्ग सिर पर बैठ जाता है.तब टमाटर का दाम पूछना भी ग़ैर ज़रूरी लगता है.
शासक वर्ग को ऐसे ही लोग पसंद भी है.
इंसान फ़ितरती तौर पर चापलूसपसंद होता है.चापलूसी नहीं सुनना वह अपनी शान में ग़ुस्ताख़ी समझता है.शासक वर्ग में यह कीटाणु अधिक पाया जाता है.पहले राजा का दरबार नौरत्नों से सजता था,आज क़लमकार,अदाकार,पत्रकार से दरबार सजता है.जो जिस विचारधारा का होता है,वहीं की दरबारी करता है.शासक वर्ग को ऐसे ही लोग पसंद भी है.सच्चा,पक्का,अच्छा,ईमानदार को वह हीनभावना से देखते हैं.नीतीश जी,किस पत्रकार की बात कर रहे,हम समझ नहीं पा रहे.जिसको वह तोपची समझ रहे दरअसल,वे लोग आज की तारीख़ में तोप रहे नहीं.उनका नाम सिर्फ चल रहा है.काफी दिन हुए अच्छी,बेबाक रिपोर्ट पढ़ने को तरस गया हूं.नीतीश जी,आज भी उन्हें ही पत्रकार मान रहे हैं.
छोटे-छोटे समूह में बेहतरीन पत्रकारिता हो रही है
एक दशक में पत्रकारिता की पूरी दुनिया बदल गयी है.अब बड़े मीडिया संस्थानों में नहीं,छोटे-छोटे समूह में बेहतरीन पत्रकारिता हो रही है और उसकी रिचिंग भी अच्छी है.एक बात और,बिहार में एक कारवां घूम रहा है,मीडिया मैनेज है.एक चैनल का कैमरामैन सम्भवतः साथ घूम रहा है.हर कार्यक्रम का न्यूज़ उस पर दिखाया जा रहा है और वह चैनल कौन सा है,दिन भर हिन्दू-मुस्लिम करते रहता है.विचारधारा की लड़ाई ऐसे लड़ी जाएगी?और फिर कहते हैं मीडिया मुझे दिखाता नहीं,छापता नहीं.
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